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गाँधी - एक सुनहरा दुस्वप्न

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गाँधी एक सुनहरा दुस्वप्न - मोहन दा स करमचन्द गाँधी,  देश के राष्ट्रपिता, गाँधी देश के लिए एक बरगद के समान हैं, आज गाँधी नमक बरगद इतना बड़ा हो चूका है की मेरे जैसा आलोचक इस वटव्रक्ष का क्या अहित करेगा. लेकिन इस लेख को पढने से पहले हमे जान लेना जरुरी है के प्रशंसा और बढाई कोई विचार नहीं है, ये किसी भी महापुरुष की हस्ती में इजाफा नही करते, ये मात्र उसे जरिया बना कर आगे बढ़ने का साधन ही है, ठीक इसी तरह से निंदा और बुराई भी कोई विचार नहीं है, ये किसी भी महापुरुष की महानता को 1 इंच भी काम नही कर सकते, प्रसंशा और बुराई दोनों ही एक ही तरह के हथियार है जो हर महापुरुष पर बेअसर हैं,   तो क्या किसी महापुरुष को लेकर कभी कोई विचार होने ही नही चाहिए? बिल्कुल होने चाहिए, आलोचनात्मक तरीके से पहले हर महापुरुष को धो कर देख लेना चाहिए की सोने की तरह चमकने वाला ये प्रतिरूप सच में सोना ही है या सिर्फ रंगे सियार की तरह सोने का रंग लपेट कर बैठा कोई सुनहरा दुस्वप्न, आलोचना आपके महापुरुष को और भी निखर कर आपके सामने लाएगी, आलोचना की बारिश के बाद जो बचेगा वो ह