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Showing posts from October, 2012

"उजड़े गाव"

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" उजड़े गाव " शहराँ की इस दौड़ ने , ना जाने कितने गाम उजाड़े हैं सुधारण खातिर अपना उल्लू , इन्हाने सारे काम बिगाड़े हैं ला के आग महारे घराण मे , ये खुद चैन ते सोवे हैं अपनी सुख - सुविधा खातिर , ये गामा के चैन ने खोवे हैं बहका के हमने , महरी जिंदगी मे बीज दुखा के बोवे हैं रे ये के जानेह , उज्ड़ेह पड़े इन घराँ मैं , भूखे - प्यासे कितने बालक रोवे हैं मुर्दें के ये कफ़न बेच दें , इतने तगड़े ये खिलाड़े हैं शहराँ की इस दौड़ ने , ना जाने कितने गाम उजाड़े हैं जो धरती है जान ते प्यारी , वो माँ महरी ये खोसे हैं छल - कपटी समाज के निर्माता , आज म्हारे उपर धोसे हैं खुद खा जावे लाख - करोड़ , अर् म्हारी subsides ने कोसे हैं शर्म आनी चहिय तमने , तहारा ख़ाके ताहारे उपर भोसे हैं भूल गये उपकार हमारे , सिंघो तहारे उपर गिदर दहाड़ै हैं शहराँ की इस दौड़ ने , ना जाने कितने गाम उजाड़े हैं सुधारण खातिर अपना उल्लू , इन्हाने सारे क

सिलसिले

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सिलसिले क्या बताए मुव्वकील- वो तो खुश्बू से नफ़रत के लिया जाने जाते हैं , और हम अपने जहाँ मे फुलो के कदरदार कहलाते हैं . उनके घरो मे लगती हैं महफिले , रुख़ हमारे बदनाम बताए जाते हैं . कहते है दाग वो जिन्हे , वो हमारे माथे पर तिलक लगाए जाते हैं . कैसे करले मोहबत साकी हम इस जाम से , ये जाम ही हमारी मोहबत को बेअदबी बताते है . गर चाहते है वो हमे इस तरह तो फेर क्यूँ हमे सताते हैं . अरे हाँ वो तो खुश्बू से नफ़रत के लिया जाने जाते हैं , और हम अपने जहाँ मे फुलो के कदरदार कहलाते हैं . क्यों करते है दुनिया सिर्फ़ बुलंदिओ से प्यार , बाँटते हैं जो जीत , क्यू न्ही बाँटते वो हार , अक्सर मायूसियो मे पड़ती है , तन्हाइओ की मार . देते है वो जखम गहरे , फिर हमारे जख़्मो पर ही हमे वो हसाते हैं , हैं खुद वो किसी और की मोहताज , तो क्यू हम पर वो हक़ जताते हैं , अरे भूल जाते है ह्म की , वो तो खुश्बू से नफ़रत क