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मैं, बधाइयाँ और मानुषी छिल्लर

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मैं, बधाइयाँ और मानुषी छिल्लर - गर्व के पल हैं, 17 साल बाद एक भारत की लड़की ने विश्व सुन्दरी के तमगे पर कब्ज़ा किया और हम सब उधेलित हो उठे, आपस में ही लग गए बधाइयाँ देने जैसे की अब हमारे दुखो का दिक्कतों का निवारण बस हो ही गया है, आज भारत ने एक ताज जीत लिया अब देश की शान में हर किसी को कसीदे पढने चाहिए, मुझे इस वजह से पढने चाहिए की मानुषी ने हमे गर्व यानि दम्ब करने का एक मोका तो दिया, अब दम्ब और गर्व में एक लकीर मात्र का फर्क है, जहाँ आप अपनी किसी नही उपलब्धि पर गर्व कर सकते है वहीँ दुसरो की उपलब्धि पर खुद को बधाइयाँ देना और दुसरे पक्ष को लगभग अनसुना कर देना दम्ब हैं, यक़ीनन तोर पर मानुषी ने मेहनत की है और उसने एक सोंदर्य प्रतियोगिता जीती है, उसके लिए वो बधाई की पात्र है, लेकिन ये एक सामान्य सी घटना है, लेकिन कुछ लोगो के लिए ये घटना असामान्य बन गई है वजह है की कुछ लोगो ने मानुषी का विरोध तो नही किया लेकिन सुन्दरता के अलग आयाम बता दिया जिन पर बहस खड़ी हो गई जो की मेरे मुल्क में बिल्कुल भी नई नही है. भारत में मोजुदा बढाई देंने वाले 95% लोग नही जानते की MISS WORLD  प्र

गाँधी - एक सुनहरा दुस्वप्न

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गाँधी एक सुनहरा दुस्वप्न - मोहन दा स करमचन्द गाँधी,  देश के राष्ट्रपिता, गाँधी देश के लिए एक बरगद के समान हैं, आज गाँधी नमक बरगद इतना बड़ा हो चूका है की मेरे जैसा आलोचक इस वटव्रक्ष का क्या अहित करेगा. लेकिन इस लेख को पढने से पहले हमे जान लेना जरुरी है के प्रशंसा और बढाई कोई विचार नहीं है, ये किसी भी महापुरुष की हस्ती में इजाफा नही करते, ये मात्र उसे जरिया बना कर आगे बढ़ने का साधन ही है, ठीक इसी तरह से निंदा और बुराई भी कोई विचार नहीं है, ये किसी भी महापुरुष की महानता को 1 इंच भी काम नही कर सकते, प्रसंशा और बुराई दोनों ही एक ही तरह के हथियार है जो हर महापुरुष पर बेअसर हैं,   तो क्या किसी महापुरुष को लेकर कभी कोई विचार होने ही नही चाहिए? बिल्कुल होने चाहिए, आलोचनात्मक तरीके से पहले हर महापुरुष को धो कर देख लेना चाहिए की सोने की तरह चमकने वाला ये प्रतिरूप सच में सोना ही है या सिर्फ रंगे सियार की तरह सोने का रंग लपेट कर बैठा कोई सुनहरा दुस्वप्न, आलोचना आपके महापुरुष को और भी निखर कर आपके सामने लाएगी, आलोचना की बारिश के बाद जो बचेगा वो ह